जाको मन लाग्यो गोपालसों, ताहि और कैसे भावे हो लेकर मीन दूध में राख्यो, जलबिन सचु नहि पावे हो ||1||ज्यों शूरा रणधूम चलत है,पीड न काहू जनावे।ज्यों गुंगो गुड खाय रहत है,सुख स्वाद नहिं बतावे||2||जैसे सरिता मिली सिंध…
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