रात / मधुप मोहता
तुमने कभी रात की ख़मोशी से बातें की हैं,
उसकी तनहाई का दर्द कभी बांटा है,
जिसके सीने की आंच में तपकर,
रोज़ इक चांद पिघल जाता है।
तुमने देखे है कभी रात के ज़ख़्म,
और देखा है उनसे उठता धुआं।
धुआं, जो अंध…
Very Melodious.
bahut khubsurat --
Awesome ..
Very Emotional Voice